शिशु के साथ होने वाली आम पेरेंटिंग मिस्टेक्स (Common Parenting Mistakes with Newborn Babies)
- शिशु को अत्यधिक खिलाना: शिशु को बार-बार और बिना भूख के दूध पिलाने से उसका पेट खराब हो सकता है और उसे गैस की समस्या हो सकती है।
- रूटीन फॉलो न करना: शिशु को बिना किसी रूटीन के पालना उसे असुरक्षित महसूस करा सकता है और उसकी नींद और भूख में अनियमितता ला सकता है।
- डकार न दिलाना: दूध पिलाने के बाद शिशु को डकार न दिलाना गैस और पेट दर्द की समस्या पैदा कर सकता है।
- दवा का अति उपयोग: डॉक्टर की सलाह के बिना दवा का प्रयोग शिशु के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकता है।
- शिशु को अकेला छोड़ना: नवजात शिशु को लंबे समय तक अकेला छोड़ना उसे असुरक्षित महसूस करा सकता है।
- बोतल से दूध पिलाना: बोतल से दूध पिलाना शिशु के दांतों और मुँह के विकास में समस्या पैदा कर सकता है।
- खिलौनों का अति उपयोग: अत्यधिक खिलौनों का उपयोग शिशु के मानसिक विकास को प्रभावित कर सकता है।
- गलत तरीके से पकड़ना: शिशु को गलत तरीके से पकड़ने से उसकी हड्डियों और मांसपेशियों को नुकसान पहुंच सकता है।
- सही मात्रा में नींद न दिलाना: शिशु को पर्याप्त नींद न मिलने से उसका विकास प्रभावित हो सकता है।
- गंदे हाथों से छूना: गंदे हाथों से शिशु को छूने से उसे संक्रमण का खतरा हो सकता है।
- सर्दियों में अत्यधिक गर्म कपड़े पहनाना: अत्यधिक गर्म कपड़े पहनाने से शिशु को हीट रैशेज और असुविधा हो सकती है।
- स्नान में सावधानी न बरतना: शिशु को स्नान कराते समय उसकी सुरक्षा का ध्यान न रखना दुर्घटना का कारण बन सकता है।
- टीवी या मोबाइल का अति उपयोग: शिशु को टीवी या मोबाइल के सामने ज्यादा समय तक रखना उसके मानसिक विकास को प्रभावित कर सकता है।
- असंतुलित आहार देना: शिशु को असंतुलित आहार देने से उसे पोषक तत्वों की कमी हो सकती है।
- सामाजिक संपर्क कम करना: शिशु को सामाजिक संपर्क से दूर रखना उसके सामाजिक और भावनात्मक विकास को प्रभावित कर सकता है।
- संयुक्त परिवार: संयुक्त परिवार में दादी-नानी का अनुभव और प्यार शिशु की देखभाल में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उनके अनुभव से माता-पिता को सही पेरेंटिंग के तरीके सीखने को मिलते हैं।
- घरेलू नुस्खे: शिशु की छोटी-मोटी समस्याओं के लिए घरेलू नुस्खों का उपयोग किया जाता था, जैसे पेट दर्द के लिए हींग का पानी, त्वचा के लिए नारियल तेल आदि।
- कहानी और लोरी: दादी-नानी द्वारा सुनाई जाने वाली कहानियां और लोरियां शिशु के मानसिक और भावनात्मक विकास में सहायक होती थीं।
- संस्कार और मूल्य: पारंपरिक पेरेंटिंग में शिशु को संस्कार और मूल्य सिखाने पर जोर दिया जाता था, जिससे शिशु का नैतिक और सामाजिक विकास होता था।
- आयुर्वेदिक देखभाल: आयुर्वेदिक तेलों से शिशु की मालिश और स्नान करना शिशु के शारीरिक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी माना जाता था।
- शिशु का रोना: अगर शिशु बार-बार बिना किसी स्पष्ट कारण के रोता है, तो यह संकेत हो सकता है कि उसे पर्याप्त आराम या पोषण नहीं मिल रहा है।
- नींद में बाधा: शिशु की नींद में बाधा आना या उसका अच्छी तरह से न सोना यह दर्शा सकता है कि उसकी दिनचर्या में कुछ गड़बड़ है।
- पेट की समस्याएं: शिशु को बार-बार गैस, कब्ज या पेट दर्द होना यह संकेत हो सकता है कि उसकी डाइट या फीडिंग में कुछ गलत है।
- वजन में कमी: शिशु का वजन ठीक से नहीं बढ़ना यह दर्शाता है कि उसे पर्याप्त पोषण नहीं मिल रहा है।
- चिड़चिड़ापन और असंतोष: अगर शिशु हमेशा चिड़चिड़ा और असंतोषजनक रहता है, तो यह उसकी असुविधा का संकेत हो सकता है।
- अत्यधिक खिलाना नहीं चाहिए: शिशु को बार-बार और बिना भूख के दूध पिलाना उसकी पाचन क्रिया को प्रभावित कर सकता है।
- अनियमित दिनचर्या नहीं होनी चाहिए: शिशु के लिए नियमित दिनचर्या आवश्यक है ताकि उसकी नींद और भोजन का समय निश्चित हो।
- दवा का बिना डॉक्टर की सलाह के उपयोग नहीं करना चाहिए: बिना डॉक्टर की सलाह के किसी भी दवा का उपयोग शिशु के लिए हानिकारक हो सकता है।
- अकेला नहीं छोड़ना चाहिए: शिशु को अकेला छोड़ना उसके लिए खतरनाक हो सकता है।
- गलत स्थिति में दूध पिलाना नहीं चाहिए: गलत स्थिति में दूध पिलाने से शिशु के गले में दूध जा सकता है और उसे साँस लेने में कठिनाई हो सकती है।
- बोतल से दूध पिलाने में सावधानी न बरतना: गंदे बोतल का उपयोग शिशु के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है।
- कपड़ों का गलत चुनाव नहीं करना चाहिए: मौसम के अनुसार शिशु के कपड़ों का चुनाव न करना उसे ठंड या गर्मी से बीमार कर सकता है।
- शिशु को झूले में झुलाना नहीं चाहिए: शिशु को झूले में तेज़ी से झुलाना उसके लिए खतरनाक हो सकता है।
- अत्यधिक खिलौनों से खेलाना नहीं चाहिए: अत्यधिक खिलौनों से शिशु का मानसिक विकास प्रभावित हो सकता है।
- शिशु के साथ धूम्रपान नहीं करना चाहिए: धूम्रपान का धुआं शिशु के लिए बेहद हानिकारक है।
- शिशु को जोर से हिलाना नहीं चाहिए: शिशु को जोर से हिलाना उसकी हड्डियों और मांसपेशियों को नुकसान पहुंचा सकता है।
- शिशु के साथ तेज़ आवाज में नहीं बोलना चाहिए: तेज़ आवाज में बोलना शिशु को डर सकता है और उसकी सुनने की क्षमता पर भी असर डाल सकता है।
- शिशु को अत्यधिक ठंडे या गर्म पानी में स्नान नहीं कराना चाहिए: शिशु को अत्यधिक ठंडे या गर्म पानी से स्नान कराना उसकी त्वचा के लिए हानिकारक हो सकता है।
- शिशु को सोते समय अकेला नहीं छोड़ना चाहिए: शिशु को सोते समय अकेला छोड़ना उसकी सुरक्षा के लिए खतरनाक हो सकता है।
- बिना देखभाल के शिशु को किसी के साथ नहीं छोड़ना चाहिए: शिशु की देखभाल के लिए किसी भरोसेमंद व्यक्ति की जरूरत होती है।
- मां: शिशु की प्राथमिक देखभाल और पोषण की जिम्मेदारी मां की होती है। उसे शिशु की डाइट, नींद और सुरक्षा का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
- पिता: पिता का सहयोग मां को आराम देने और शिशु के पालन-पोषण में मदद करने में महत्वपूर्ण होता है।
- दादी-नानी: दादी-नानी का अनुभव और पारंपरिक ज्ञान शिशु की देखभाल में सहायक होता है। उनके अनुभव से शिशु को सही मार्गदर्शन मिलता है।
- भाई-बहन: बड़े भाई-बहन शिशु के साथ खेलने और उसे खुश रखने में मदद कर सकते हैं।
- पड़ोसी: पड़ोसी भी शिशु की देखभाल में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, विशेषकर इमरजेंसी स्थितियों में।
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