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शिशु को पेट के बल लेटाने के फ़ायदे और सावधानियां (Benefits of Tummy Time)

#Benefits and Precautions of Laying the Baby on His Stomach
नवजात शिशु के जीवन के शुरुआती कुछ महीने उनके शारीरिक और मानसिक विकास के लिए बेहद महत्वपूर्ण होते हैं। इस समय के दौरान, शिशु का सोने का तरीका और नींद का पैटर्न उनके स्वास्थ्य और विकास पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है। उनका नींद का पैटर्न वयस्कों से काफी अलग होता है। नवजात शिशु अधिकतर समय सोते रहते हैं, जिससे उनका शरीर और मस्तिष्क तेजी से विकास करता है | 

आमतौर पर शिशु दिन और रात में बार-बार सोते और जागते रहते हैं। उनके सोने के पैटर्न में बदलाव उनके शारीरिक विकास के साथ-साथ उनके मानसिक और सामाजिक विकास को भी प्रभावित करता है। इस संदर्भ में, शिशु को पेट के बल लिटाने का अभ्यास एक महत्वपूर्ण पहलू है जिसे सही तरीके से समझना और अपनाना आवश्यक है।

नवजात शिशु और नींद का पैटर्न:
नवजात शिशु के नींद का पैटर्न बहुत अनियमित हो सकता है। वे एक समय में 2-4 घंटे तक सो सकते हैं और दिन में 14-17 घंटे की नींद की आवश्यकता होती है। यह पैटर्न धीरे-धीरे बदलता है और 6 महीने की उम्र तक आते-आते शिशु की नींद अधिक नियमित हो जाती है।


शिशु को पेट के बल लिटाने के लाभ:
  • गर्दन और कंधों की मांसपेशियों को मजबूत करना: पेट के बल लेटने से शिशु की गर्दन और कंधों की मांसपेशियाँ मजबूत होती हैं।
  • पाचन में सुधार: यह पाचन को बढ़ावा देता है और गैस की समस्या को कम करता है।
  • सिर के आकार को सही रखना: सिर के पिछले हिस्से में फ्लैट स्पॉट बनने से रोकता है।
  • हाथ-पैर की ताकत: शिशु के हाथ और पैरों की मांसपेशियाँ भी मजबूत होती हैं।
  • मोटर स्किल्स का विकास: शिशु की मोटर स्किल्स विकसित होती हैं, जैसे घुटने के बल चलना और रेंगना।
  • कोऑर्डिनेशन में सुधार: हाथ-आँख के कोऑर्डिनेशन में सुधार होता है।
  • बेहतर नींद: शिशु की नींद की गुणवत्ता में सुधार होता है।
  • आराम और संतुलन: शिशु का संतुलन और आराम बढ़ता है।
  • मांसपेशियों का संतुलन: मांसपेशियों का उचित विकास और संतुलन बनता है।
  • समग्र शारीरिक विकास: शारीरिक विकास को समग्र रूप से बढ़ावा मिलता है।
  • सामाजिक और भावनात्मक विकास: शिशु के सामाजिक और भावनात्मक विकास में सहायता मिलती है।
  • स्वस्थ श्वसन प्रणाली: शिशु की श्वसन प्रणाली को स्वस्थ बनाए रखता है।
  • इम्यूनिटी बूस्ट: प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है।
  • हृदय स्वास्थ्य: हृदय की मांसपेशियों को भी स्वस्थ बनाए रखता है।
  • बॉन्डिंग: माता-पिता और शिशु के बीच बंधन को मजबूत करता है।

शिशु को पेट के बल लिटाने के दौरान सावधानियां:
    • निगरानी: शिशु को पेट के बल लिटाते समय हमेशा निगरानी में रखें।
    • समय की अवधि: एक समय में 10-15 मिनट से अधिक नहीं।
    • सपाट सतह: सपाट और सुरक्षित सतह पर ही लिटाएँ।
    • आरामदायक वातावरण: कमरे का तापमान और प्रकाश उचित रखें।
    • खेलने के लिए सुरक्षित स्थान: शिशु के आस-पास कोई कठोर या नुकीली वस्तु न हो।
    • भूखा न रखें: शिशु को पेट के बल लिटाने से पहले उसे भूखा न रखें।
    • आरामदायक कपड़े: शिशु को आरामदायक कपड़े पहनाएँ।
    • सही समय: शिशु के खेलने और जागने के समय पर ही लिटाएँ।
    • चोट से बचाव: किसी भी प्रकार की चोट से बचाव के उपाय करें।
    • प्रतिक्रिया पर ध्यान दें: शिशु की प्रतिक्रिया पर ध्यान दें।
    • नींद के लिए नहीं: शिशु को पेट के बल सोने के लिए नहीं लिटाएँ।
    • स्वस्थ वातावरण: स्वच्छ और स्वस्थ वातावरण बनाए रखें।
    • डॉक्टर की सलाह: किसी भी समस्या पर डॉक्टर से सलाह लें।
    • श्वसन संबंधी समस्याएँ: यदि शिशु को श्वसन संबंधी कोई समस्या है तो डॉक्टर से परामर्श लें।
    • फ्रीडम ऑफ मूवमेंट: शिशु को हिलने-डुलने की आजादी दें।


    आयुर्वेद का दृष्टिकोण:
    आयुर्वेद में शिशु की देखभाल और पालन-पोषण पर विशेष ध्यान दिया गया है। पेट के बल लिटाने के अभ्यास को आयुर्वेद में "मकरासन" की तरह देखा जा सकता है, जो शरीर की मांसपेशियों को मजबूत करता है और पाचन को बढ़ावा देता है। आयुर्वेद में यह माना जाता है कि शिशु के पेट के बल लेटने से वात दोष को संतुलित किया जा सकता है और इससे पाचन शक्ति में सुधार होता है।


    समय की आवृत्ति और निरंतरता:
    शिशु को दिन में 2-3 बार पेट के बल लिटाने की सलाह दी जाती है, प्रत्येक सत्र में 10-15 मिनट तक। यह अभ्यास शिशु के जागने और खेलने के समय किया जाना चाहिए और इसे धीरे-धीरे बढ़ाया जा सकता है।


    शिशु के असंतोष के संकेत:
    अगर शिशु इस स्थिति में असहज महसूस करता है, तो वह रो सकता है, चिड़चिड़ा हो सकता है या अपनी स्थिति को बदलने की कोशिश कर सकता है। ऐसी स्थिति में तुरंत शिशु को दूसरी स्थिति में ले जाएं।


    मिथक और सत्य:
    मिथक:
    पेट के बल लिटाने से शिशु को नुकसान हो सकता है। सत्य: उचित देखरेख और सावधानियों के साथ, यह अभ्यास शिशु के विकास के लिए फायदेमंद हो सकता है।

    मिथक: पेट के बल लिटाने से शिशु का दम घुट सकता है। 
    सत्य: निगरानी में और सही तरीके से करने पर, यह सुरक्षित है।

    मिथक: पेट के बल लिटाने से शिशु की नींद खराब होती है। 
    सत्य: यह शिशु की नींद की गुणवत्ता में सुधार कर सकता है।

    मिथक: पेट के बल लिटाने से शिशु को गैस की समस्या हो सकती है। 
    सत्य: यह पाचन को बढ़ावा देता है और गैस की समस्या को कम करता है।

    मिथक: पेट के बल लिटाना केवल दिन में एक बार करना चाहिए। 
    सत्य: दिन में 2-3 बार 10-15 मिनट के लिए किया जा सकता है।

    मिथक: सभी शिशुओं के लिए यह अभ्यास सुरक्षित नहीं है। 
    सत्य: अधिकतर शिशुओं के लिए सुरक्षित है, परंतु किसी भी समस्या पर डॉक्टर से परामर्श लें।

    मिथक: पेट के बल लिटाने से शिशु की पीठ कमजोर हो जाती है। 
    सत्य: इससे शिशु की पीठ और गर्दन की मांसपेशियाँ मजबूत होती हैं।

    मिथक: यह अभ्यास केवल कुछ महीने तक ही किया जा सकता है। 
    सत्य: शिशु के पहले वर्ष में इसे जारी रखा जा सकता है।

    मिथक: शिशु को केवल खेलने के समय पेट के बल लिटाना चाहिए। 
    सत्य: खेलने और जागने के समय दोनों में लिटाया जा सकता है।

    मिथक: पेट के बल लिटाने से शिशु का शारीरिक विकास बाधित होता है। 
    सत्य: यह शिशु के शारीरिक विकास को बढ़ावा देता है।


    निष्कर्ष (Conclusion):
    नवजात शिशु का समुचित विकास और स्वास्थ्य सुनिश्चित करने के लिए सही नींद का पैटर्न और सोने का तरीका महत्वपूर्ण होता है। पेट के बल लिटाने का अभ्यास शिशु के शारीरिक, मानसिक और सामाजिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह शिशु की मांसपेशियों को मजबूत करने, पाचन में सुधार, और मोटर स्किल्स को विकसित करने में सहायक होता है। हालांकि, इसे करते समय कुछ सावधानियाँ बरतनी चाहिए, जैसे कि शिशु को हमेशा निगरानी में रखना और उचित समय सीमा का पालन करना। आयुर्वेद में भी इस अभ्यास को लाभकारी माना गया है और इसे वात दोष को संतुलित करने और पाचन शक्ति को बढ़ाने के लिए उपयोगी माना गया है। इस प्रकार, पेट के बल लिटाने का अभ्यास शिशु के विकास में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है, जो उसकी समग्र भलाई और स्वास्थ्य को सुनिश्चित करता है।

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