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जन्म के बाद आखिर कैसे बदलता है बच्चे का रंग (Baby Skin Color Changes)

#How Baby Skin Color Changes after Birth
जन्म के बाद शिशु में बहुत परिवर्तन आते है फिर चाहे वो नैन-नक्श हों या रंग। शिशु के जन्म लेते ही घर के लोग उसकी शक्ल और रंग की तुलना उसकी माँ, पिता या अन्य करीबी  से करने लगते हैं। लेकिन सच यह है कि जन्म के बाद से ही शिशु का रंग एक जैसा नहीं रहता, उसमें बदलाव आना शुरू हो जाता है। जैसे पहले गहरा लाल, लाल, गुलाबी आदि।

कई शिशु जन्म के बाद सांवले होते हैं लेकिन समय के साथ उनका रंग गोरा होता जाता है या इससे विपरीत भी हो सकता है। यह रंग परिवर्तन मुख्य रूप से मेलेनिन नामक पिगमेंट की मात्रा पर निर्भर करता है, जो त्वचा के ऊपरी परत में होता है। शिशु की त्वचा में रंग के परिवर्तन का मुख्य कारण उसके जीवनशैली, वातावरण, आहार और पोषण से भी संबंधित हो सकता है। धूप, धूल, और अन्य वातावरणीय कारकों का प्रभाव शिशु की त्वचा पर होता है, जिससे मेलेनिन की उत्पत्ति में परिवर्तन होता है। माँ के दूध में प्राकृतिक रूप से मौजूद विटामिन D, कैल्शियम, और अन्य पोषक तत्वों की मात्रा भी त्वचा के रंग में परिवर्तन ला सकती है।

आइये जानते कि जन्म के बाद आखिर कैसे बदलता है बच्चे का रंग |

जन्म के बाद आखिर कैसे बदलता है बच्चे का रंग (How does the Baby Skin Color Change After Birth)

·       जन्म के समय (At the Time of Birth): बच्चा जैसे ही माँ के गर्भ से बाहर आकर बच्चा हवा में साँस लेता है तो उसकी त्वचा का रंग बदलना शुरू हो जाता है। जन्म के समय, शिशु की त्वचा का रंग ब्रेथिका नामक यह कोषिकाओं की उपस्थिति के कारण होता है। इस प्रक्रिया को 'जन्मानंतर कच्चा रंग' कहा जाता है और यह शिशु के जन्म के कुछ सप्ताहों तक बना रहता है। यह गुलाबी या हल्का लाल होता है जो धीरे धीरे गहरे लाल रंग में भी बदल जाता है जो शरीर में रक्त संचार की प्रक्रिया के शुरु होने का संकेत होता है। जब शिशु बहुत अधिक रोता है तो उसका चेहरा और होंठ नीले या जामुनी हो जाते हैं हालाँकि शिशु के चुप होने पर इनका रंग फिर से गुलाबी हो जाता है। अगर आपके बच्चे का रंग गुलाबी नहीं हैं बल्कि नीला है तो डॉक्टर से मिले क्योंकि यह किसी स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या की तरफ इशारा हो सकता है जो कयनोसिस कहलाता है और इसका कारण है, उनमें रक्त संचार प्रणाली जो विकसित नहीं हुई होती हैंयह शिशु के दिल में समस्या का संकेत हो सकता है कि उसका दिल सही से रक्त को उसके शरीर तक नहीं पहुंचा रहा हो  

·     एक सप्ताह बाद (After One Week): शिशु के जन्म के दो या तीन दिन बाद उसका रंग गुलाबी हो जाता है और इसका कारण है सही ब्लड सर्कुलेशन का होना

·      दो या तीन महीने बाद (After Two or Three Months): शिशु के जन्म के दो या तीन महीने बाद उसका असली रंग सामने आता है यानी गोरा या सांवला। यह रंग पूरी तरह से जीन्स पर निर्भर करता है और इस पर किसी अन्य चीज़ का नियंत्रण नहीं होता हैं।  

·       रैशेज (Rashes): नवजात शिशु को विशेष छाती व गर्दन पर रैशेज होने के करण भी अलग रंग दिखाई देता है । यह दाने कई बार जल्दी समाप्त हो जाते हैं तो कई बार एकाध महीने तक कायम रहते हैं।  

·   पीला रंग (Yellow Color): न्यूबॉर्न बेबी का कलर शुरुआत में पीला भी हो सकता है, ऐसा पीलिया (Jaundice) के कारण हो सकता है। ऐसा होना शिशु के जन्म के बाद सामान्य होता है। अगर बच्चे को पीलिया है तो आप उसे डॉक्टर की सलाह पर सुबह 10 से 15 मिनट तक धूप में रख सकते हैं। यह पीलिया के उपचार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है | अगर एक से दो सप्ताह बाद भी बच्चे के शरीर पर पीले दाग या उसकी आंखों में पीलापन नजर आएं तो डॉक्टर की तुरंत सलाह लें। जैसे -जैसे शिशु का लिवर विकसित होता है, वैसे ही शिशु में पीलिया ठीक हो जाता है।

·       बर्थमार्क (Birthmark): शिशु के शरीर पर हल्के लाल रंग के धब्बे भी हो सकते है जो समय के साथ गायब या हल्के हो जाते हैं। इन्हें बर्थमार्क कहा जाता है जो कि अलग-अलग रंग और आकर के हो सकते हैं। लेकिन अगर आपको कुछ गंभीर या असामान्य सा लग रहा हो तो तुरंत डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए  

·       प्री मेच्योर बच्चों की स्किन (Premature Baby Skin Color)समय से पहले जन्मे बच्चे की त्वचा पतली और पारदर्शी होती है और हो सकता है कि पतले एवं रोमिल बालों से ढकी हो जिसे यह लेनुगो भी कहा जाता है । जन्म के समय उनके शरीर पर चिपचिपा सफेद पदार्थ भी हो सकता जिसे वेक्स भी कहते है

·     धुप और त्वचा का रंग (Sunlight and Skin Color): सामान्तया अगर हम बच्चे को ज्यादा देर तक धूप में रखें तो उसका रंग सांवला हो सकता है। धूप की वजह से शिशु की रंगत में आने वाला यह बदलाव अस्थाई होता है। नवजात शिशु को धूप में लेजाकर, तेल इत्यादि लगाकर छोड़ना नहीं चाहिए। नवजात शिशु को केवल सुबह की गुनगुनी धूप ही उचित होती है ।   

·    अनुवांशिकता और त्वचा का रंग (Heredity and Skin Color): शिशु का रंग गोरा होगा या  सांवला होना, प्रमुखता से आनुवंशिक कारणों पर निर्भर होता है। अगर परिवार में त्वचा का रंग गोरा होता है, तो नवजात शिशु की त्वचा का रंग भी गोरा हो सकता है, और यदि वह अधिक काला होता है, तो नवजात शिशु का रंग भी काला हो सकता है। ऐसा माना जाता है कि शिशु की मालिश करने, उसकी त्वचा पर कुछ खास क्रीम लगाने या गर्भावस्था के समय कुछ खास चीज़ों को खाने से बच्चे का रंग साफ हो सकता है लेकिन विज्ञान की नज़र से यह बिलकुल भी सच नहीं है |


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