#What To Do If Newborn Has Jaundice
नवजात शिशु का जन्म एक नये जीवन की शुरुआत होती है, लेकिन कई बार जन्म के बाद शिशु को जॉन्डिस की समस्या का सामना करना पड़ता है। जॉन्डिस एक ऐसी स्थिति है जिसमें बच्चे की त्वचा और आंतरिक अंगों का पीलापन होता है। इस स्थिति का समय पर पहचाना और उपचार किया जाना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
इस लेख में, हम नवजात शिशु में जॉन्डिस के बारे में विस्तृत रूप से चर्चा करेंगे।
नवजात शिशु में जॉन्डिस के कारण:
नवजात शिशु में जॉन्डिस एक सामान्य समस्या है जो बच्चों को पीलापन में ले जाती है, जो कि बिलीरुबिन नामक एक प्रोटीन की वजह से होता है। बिलीरुबिन शरीर में हेमोग्लोबिन के विघटन के बाद बनने वाला प्रोटीन है, जो लाल रक्त को निष्कासित करने के लिए जिम्मेदार है। जॉन्डिस इसलिए होता है क्योंकि इस प्रोटीन का लेवल बच्चे के शरीर में अधिक हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप उसकी त्वचा और आंतरिक अंगों का पीलापन दिखाई देता है।
जॉन्डिस के अन्य कारणों में लिवर की सामान्य कार्यक्षमता में कमी, गलब्बे के कारण बिलीरुबिन की वृद्धि, अधिक खून के बनावटी संपर्क, और थालेसीमिया जैसी रक्त संबंधित रोग शामिल हो सकते हैं।
इस रूप में, नवजात शिशु में जॉन्डिस के कई कारण हो सकते हैं, जो बिलीरुबिन के स्तर में वृद्धि को प्रेरित कर सकते हैं। समय रहते डॉक्टर से परामर्श करना और उपचार कराना जॉन्डिस को सही करने के लिए महत्वपूर्ण है |
- अधिक बिलीरुबिन: नवजात शिशु में जॉन्डिस का मुख्य कारण होता है अधिक बिलीरुबिन, जो कि एक पीला रंग का प्रोटीन होता है |
- आर्यूवेडिक लक्षण: अयुर्वेद में इसे "कामल" या "हरित कामल" भी कहा जाता है, और इसका मुख्य कारण मां के आलसी खानपान के कारण होता है।
नवजात शिशु में जॉन्डिस के लक्षण:
- त्वचा का पीलापन: नवजात शिशु की त्वचा में पीलापन का दिखना एक मुख्य लक्षण है।
- आँखों और मुंह का पीलापन: आँखों का पीलापन और मुंह के अंदर के भागों का सफेद होना भी जॉन्डिस के लक्षण हो सकते हैं।
- पेशाब का पीलापन: नवजात शिशु का पेशाब पीला या हल्का हो सकता है, जो जॉन्डिस का लक्षण हो सकता है।
- अक्सर रोना: बच्चा अक्सर रो सकता है और अनियंत्रित रूप से रो सकता है, जो जॉन्डिस का एक अन्य संकेत हो सकता है।
नवजात शिशु में जॉन्डिस की देखभाल:
- प्रकार का पता करें: पहले से ही नवजात शिशु को डॉक्टर के पास ले जाएं और उन्हें जॉन्डिस का परीक्षण कराएं।
- सूरज के संपर्क में रखे: नवजात शिशु को कुछ समय तक सूर्य की हलकी रोशनी में लेटाए।
- सही आहार: मां को बच्चे को पूरी तरह से दूध पिलाना चाहिए, जो कि उनकी जॉन्डिस को कम कर सकता है।
डॉक्टर को बुलाने की आवश्यकता:
- नवजात शिशु की हल्की कमजोरी
नवजात शिशु के लिए घर पर कुछ आवश्यक सामग्री:
- जॉन्डिस मीटर: इससे नवजात शिशु के बिलीरुबिन का स्तर मापा जा सकता है।
- चिकित्सा उपकरण: जॉन्डिस के इलाज के लिए निर्धारित चिकित्सा उपकरण।
- डॉक्टर का संपर्क: डॉक्टर का संपर्क नंबर और आपातकालीन स्थितियों के लिए उनका सहायक होना।
जॉन्डिस के बारे में मिथक और सच्चाई:
मिथक: जॉन्डिस सिर्फ बड़े लोगों में होता है।
सच: नवजात शिशु में भी जॉन्डिस हो सकता है।
मिथक: नवजात शिशु को सूरज के प्रकार में रखने से जॉन्डिस ठीक हो जाता है।
सच: सूरज की रोशनी का समय सीमित रखें, जॉन्डिस का उपचार चिकित्सक द्वारा किया जाना चाहिए।
मिथक: जॉन्डिस ठीक होने के लिए काला नमक उपयोगी है।
सच: काला नमक का उपयोग जॉन्डिस के इलाज में नहीं किया जाता है।
मिथक: जॉन्डिस का इलाज घर पर ही किया जा सकता है।
सच: जॉन्डिस का इलाज केवल डॉक्टर की निर्देशिका के अनुसार ही होना चाहिए।
मिथक: जॉन्डिस से गर्भावस्था में महिलाओं को सुरक्षित होता है।
सच: गर्भावस्था में महिलाओं को भी जॉन्डिस हो सकता है, जो की उनके और बच्चे दोनों के लिए हानिकारक हो सकता है।
मिथक: नवजात शिशु के लिए जॉन्डिस सामान्य समस्या है।
सच: जॉन्डिस गंभीर स्थिति हो सकती है, जो अनधिकृत उपचार की दरकार को खड़ा कर सकती है।
निष्कर्ष (Conclusion):
इस प्रकार, जॉन्डिस नवजात शिशु के लिए एक गंभीर समस्या हो सकती है जिसे समय रहते पहचान और उपचार किया जाना चाहिए। अपने बच्चे के स्वास्थ्य की ध्यानपूर्वक देखभाल के लिए डॉक्टर की सलाह और निर्देशों का पालन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। नवजात शिशु के लिए उपचार के दौरान धैर्य और संवेदनशीलता का बनाए रखना भी महत्वपूर्ण है। अगर किसी भी समय आपको लगे कि बच्चे को कोई असामान्य स्थिति है या उसमें कोई गंभीरता है, तो तुरंत चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए।
इस प्रकार, नवजात शिशु में जॉन्डिस के लिए उपयुक्त देखभाल और सतर्कता के साथ, उपयुक्त स्वास्थ्य सेवाओं की आवश्यकता होती है। समय रहते जांच और उपचार कराने से यह समस्या समाधान हो सकती है और बच्चे को स्वस्थ जीवन की शुरुआत मिल सकती है।
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